महात्मा गाँधी जी का व्यक्तित्व बहुमुखी था और उनके विचारों का केन्द्रीय बिन्दु " सत्य और अहिंसा रहा हैं। महात्मा गाँधी जी अहिंसा को एक व्यापक वस्तु मानते थे।
उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि जिन विचारों को समाज के लिए दिए उनको अपने जीवन में पूरी तरह से पालन किया।उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नही था।यही उनकी सफलता का मूलमंत्र था।
सत्य और अहिंसा के आदर्श गांधी के संपूर्ण दर्शन को रेखांकित करते हैं तथा यह आज भी मानव जाति के लिए अत्यंत प्रासंगिक है।
महात्मा गांधी की शिक्षाएं आज और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं जबकि लोग अत्याधिक लालच, व्यापक स्तर पर हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन शैली का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
सत्य और अहिंसा अन्योन्याश्रित है।अहिंसा कायरता का आवरण नही है यह वीरों का आभूषण है।गांधीवादी अहिंसा में मनसा, वाचा व कर्मणा की हिंसा नही है।अगर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम देखे तो पाएंगे कि लोग किसी को न मारने को ही अहिंसा समझते है जबकि ये आंशिक रूप है।
जबकि आज जो लड़ाई दंगे फसाद चाहे सामान्य हो या विस्तृत तौर पर सबके मूल में कही न कही कुविचार, द्वेष उतावली,गलत बोलना,लालच विद्यमान होना,कटु भाषण, कर्म द्वारा गलत आचरण, किसी का बुरा चाहना ये सब हिंसा विद्यमान है।यदि मानव अपने जीवन काल में मनसा, वाचा और कर्मणा से अहिंसा को अपना ले तो विश्वबंधुत्व की भावना प्रबल होगी।
आज सारा देश पूज्य गाँधीजी का स्मरण करता है। केवल कोरे स्मरण-मात्र से उनको श्रद्धांजलि अर्पित नहीं हो सकती,बल्कि सच्ची श्रद्धांजलि तो वह होगी,जब समग्र राष्ट्र उनके चिन्तन को तहेदिल से जीवन-व्यवहार में लाये।
आइए आज से ही मैं और आप सब सच्चे अर्थों में अहिंसा के प्रवर्तक,पुजारी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दे।कहा गया है न सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला नही कहते।
लेखक : रेनू शब्दमुखर
(ज्ञानविहार स्कूल) जयपुर राजस्थान
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