Friday, October 30, 2020

कविता | मेरे शब्द कुछ अनकहे...| मनीषा कुमारी | मुंबई

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शीर्षक- मेरे शब्द... कुछ कहे ....कुछ अनकहे।
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तुम्हें जीना तो बहुत चाहा जिंदगी 
तू मुझे अपने आपसे  सिखाती  रही
फिर भी मैं तुम्हें लेकर जिऊ भी कितना तुम्हें , 
तू उतने ही मेरे आदर्श पद सहेली बनी  ।
एक ख्वाब थी मन में समेटी ,  
शायद मैं उस छोर का एक किनारा हूं ।

ले जाए कोई मुझे ऐसी जगह कहीं।
जहा विश्वास के पथ का एक एहसास  बनूं । 

मुझे पढ़ाया तूने जीवन का संघर्ष
दुनिया बताई  जीने की कला ।
और ज्ञान के पथ  को लेकर मुझे प्रकाशमय दृष्टिकोण बताया , 
सोचती हूं  अभी मै , 
उसी छोर का  शायद हिस्सा हूं । 

जहां चार दीवारों में केवल ज्ञान ही नहीं ... 
भविष्य भी पढ़ाई जाती  है...
उसी पद पर लेकर मैं , 
किसी आशय का किस्सा बनु ।

किताबों की बातें तो ज्ञान  बनकर कहीं भी लहराया करती है । 
 मैं जुगनू बनू उस जीवन  की 
जो छात्र के सोच को उजागर करती हैं । 

 जिंदगी को प्रकाशीत  करने मे  प्रयास  करु 
अंधेरे से भी बिना डरे , बिना रुके  आगे बढू। 
मैं प्रभा बनु उस तिमिर  की।
जो जिंदगी को रौशन करती है । 
और हाथ रखु उसी कंधे पर
जो लड़ने की उम्मीद  पैदा  अंधियारा  से करती हैं ।
 मैं हौसला बनु एक लड़ाई के उम्मीद की ।
जीत की  एक नया इतिहास रचू ...। 

हा मैं भी किसी स्कूल की एक आर्दश  शिक्षिका बनू....।

अहंकार ना छूये मुझे 
मगर गर्व की एक  प्रतीक बनू..... ।-2 
भीड़ में खड़ा होना मकसद नही है हमारा , 
भीड़ जिसके लिए खड़ी हो वो मै  बनु ।

मरने के बाद भी  एहसास से हर कोई मेरा भी  नाम ले ।
थी एक शिक्षिका ऐसी भी ये सोचकर  हमे  याद करे , 
मैं किसी कहानी का किस्सा  नहीं , 
मैं किसी की जीवन का हिस्सा  बनू।
कोई किसी भाषा के बंधन में ना जकडे मुझे ।
मै केवल राष्ट्र सेवा का हिस्सा बनूं ।-2 

जिसमे हैं मैने ख्वाब बुने , 
जिसमे जुड़ी मेरी हर आशा है , 
जिससे है मुझे पहचान मिली , 
वो मेरी हिंदी भाषा हैं ।
Student- teacher
Name:- Manisha Kumari
B.Ed SY (2019-2021)
P.V.D.T.College Of Education For Women .
( S.N.D.T.W.U.)
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For more information call - 8120203050

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