यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।
(मनुस्मृति ३/५६) - सपना मिश्रा मुंबई (लेख)
भारतीय समाज में नारी और उनके मातृत्व को पूजा जाता है उन्हें धन और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है । हमारे समाज में महिलाओं को भी उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना कि पुरुषों को दिया जाता है । समाज में उनका स्थान ना तो पुरुषों से ज्यादा है और ना ही उनसे कुछ कम है। इतना ही नहीं हमारे भारतीय समाज में उन्हें दुर्गा, काली, चंडी आदि शक्तियों का भी रुप कहा जाता है। हिंदू आदर्श ने नारी को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है, नारी की पूजा होती है और उन्हें पूजनीय भी कहा जाता है, लेकिन जब उन्हीं विवाहित महिलाओं के साथ यदि कोई ऐसी दुर्घटना घटित हो जाती है जिससे कि वह विधवा हो जाती हैं तो, यही समाज उन्हें अभागन, कलंकिनी आदि नामों से संबोधित करने लगता है,और उसी समाज की सोच उन्हें लेकर बदल जाती है, जहां की नारी को पूजा जाता है, और पूजनीय आदि शक्तियों का रूप आदि से उनको अभागन बना देता है। इसी समाज में उन्हें घृणित नजरों से देखा जाने लगता है। ऐसा दोहरा सोच क्यों?
हमारे समाज में विधवा स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। उनके पति की मृत्यु होने पर उन्हें सभी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है। वह अच्छा भोजन नहीं कर सकती, अच्छे वस्त्र नहीं पहन सकती, तेल, फुल, क्रीम, इत्र आदि सुगंधित वस्तुओं का प्रयोग नहीं कर सकती, उन्हें श्रृंगार नहीं करने दिया जाता, यहां तक कि उन्हें अपने मन मुताबिक रहने तक भी नहीं दिया जाता है, उनके बाल तक कटा दिए जाते हैं। उसी समाज में जहां उन्हें आदर्श, धन और ममता की देवी कहा जाता है, विधवा होते ही वही समाज के लोग उसको समाज के लिए अभिशाप का दर्जा देने लगते हैं।
सामान्यत: हमारे समाज में बहुत से लोग अभी भी यह मानते हैं कि, विधवा एक अभागिनी महिला है उसे दूसरा विवाह करने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है। यहां तक कि लोग यह भी मानते हैं कि यदि, उसका दूसरा विवाह हो जाता है तो, वह सुखी नहीं रह सकती है और ना ही उसका परिवार सुखी रहेगा। लोग यहां तक मानते हैं कि उसके दुर्भाग्य का शिकार उसके नए पति को होना पड़ता है अर्थात उसके दूसरे पति को उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यही कारण है कि कोई भी ऐसी महिला से विवाह नहीं करना चाहता है। वहीं दूसरी ओर यदि किसी पुरुष के पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो, उसे दूसरा विवाह करने की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है, बल्कि वह तो अपनी पहली पत्नी के मरते ही बिना देर किए दूसरी शादी भी कर लेते हैं। इस प्रकार विवाह की यह सुविधा एकपक्षीय है, जो की पुरुषों ने अपने लिए तो रखी है किंतु स्त्रियों को इससे वंचित कर दिया है।
यह उसी भारतीय समाज के लोग हैं जो एक तरफ महिलाओं के स्थान व मर्यादाओं को इतने ऊंचे स्तर तक पहुंचा देते हैं, तो दूसरी तरफ इन्हीं लोगों की सोच उन्हीं महिलाओं को समाज में इतना नीचे गिरा देता है, जिससे कि वह घृणित नजरों से देखी जाने लगती हैं। एक तरफ महिलाओं के बारे में लोग इतने उच्च विचार रखते हैं, तो दूसरी तरफ उसी पूजनीय नारी के विधवा होने पर उन्हें अभागन, कलंकिनी और कुलक्षिनी बना देते हैं। यह कैसी मानसिकता है हमारे समाज की?
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की आधे से अधिक जनसंख्या खेती करती है और गांव में रहती है। गांव में रहने के कारण वे बाहरी दुनिया से अनजान होते हैं। वह अशिक्षित होते हैं और इसलिए वे भाग्यविधाता पर विश्वास करते हैं। अधिकांशतः भारत के लोग भाग्यवादी हैं जो यह मानते हैं कि, विधवा स्त्री पुनर्विवाह नहीं कर सकती है, यदि वह दूसरा विवाह करती है तो उसके दूसरे पति की भी मृत्यु हो जाएगी। जिसके कारण विधवा स्त्री पुनर्विवाह नहीं करती है और इन रूढ़ियों एवं अंधविश्वासों का बड़ी कठोरता के साथ पालन करती है,किंतु अब धीरे-धीरे शिक्षा का प्रचार-प्रसार गांव-गांव और शहर-शहर तक हो रहा है, जिससे भारत की जनसंख्या शिक्षित हो रही है और विधवा महिलाओं के बारे में उनकी सोच भी बदल रही है।
जहां कुछ समय पूर्व तक विधवा विवाह को गलत समझा जाता था और ऐसा विवाह करने वाले लोगों को हीन दृष्टि से देखा जाता था, वही दूसरी ओर नहीं पीढ़ी के लोगों के विचार विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में होते जा रहे हैं। आज भारतीय समाज में विधवा पुनर्विवाह होने भी लगे हैं किंतु अभी इनकी संख्या बहुत कम है। हिंदू समाज अब धीरे-धीरे इसे स्वीकृति प्रदान कर रहा है इससे कि अब हमारे समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है क्योंकि आज भारत की अधिकांश जनसंख्या शिक्षित और जागरूक है।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि आज के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समाज की सोच में विधवा महिलाओं की स्थिति को लेकर धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। जिस तरह समाज में हम और आप अपना जीवन सम्मान के साथ जी रहे हैं, उसी प्रकार विधवा महिलाओं को भी यह सम्मान प्राप्त होना चाहिए और ऐसा तभी संभव हो सकता है जब हम और आप उनके प्रति जागरूक हो, तो आइए हम सब मिलकर इस रूढ़ियों और अंधविश्वासों को मिटाने के लिए अग्रसर हो और प्रयास करते रहे, जिससे कि उन्हें भी समाज में वही सम्मान मिले जो हमें मिलता है।
स्वरचित मौलिक रचनाकार -(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सपना मिश्रा स्टूडेंट टीचर पी.वी.डी.टी. कॉलेज ऑफ एजुकेशन फॉर विमेंस युनिवर्सिटी मुंबई (महाराष्ट्र)
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